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पर्यावरण

क्या पीएमओ की बैठक में जोशीमठ के खतरे को कम बताया गया?

जोशीमठ का कितना क्षेत्र आपदा से प्रभावित, इसे लेकर अधिकारियों के विरोधाभासी बयानों पर उठे सवाल

जोशीमठ में भू-धंसाव को देखते हुए राज्य सरकार आपदा प्रबंधन में जुटी है। क्षतिग्रस्त मकानों को खाली कराकर प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बाद रविवार को मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधू, डीजीपी अशोक कुमार और मुख्यमंत्री के सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम ने भी जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण किया। लेकिन अभी तक भूं-धसाव के कारणों का पता नहीं चल सका है। साथ ही आपदा प्रभावित क्षेत्रों के दायरे को लेकर अफसरों के विरोधाभासी बयान सामने आ रहे हैं।

रविवार को प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पीके मिश्रा ने जोशीमठ में भवनों के क्षतिग्रस्त होने और भूमि धंसने की उच्च स्तरीय समीक्षा की।  बैठक में केंद्र और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा एनडीएमए, आईआईटी रुड़की, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और वाडिया इंस्टटीट्यूट के विशेषज्ञ भी ऑनलाइन जुड़े। इससे पहले खुद प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री धामी से फोन पर बात कर जोशीमठ के हालात की जानकारी ली थी। 

पत्र सूचना कार्यालय की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने बताया कि केंद्रीय विशेषज्ञों के सहयोग से राज्य और जिले के अधिकारियों ने जमीनी स्थिति का आकलन किया है। उन्होंने बताया कि करीब 350 मीटर चौड़ी जमीन की पट्टी प्रभावित हुई है। 

इस तथ्य पर आपत्ति जताते हुए जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने ट्विट किया कि गढ़वाल के आयुक्त ने मुख्यमंत्री की उपस्थिति में 40 प्रतिशत प्रभावित अर्थात इतने लोगों के निकालने या इतने क्षेत्रफल के न बचने की बात कही थी। कल प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी की बैठक में उत्तराखण्ड के चीफ सेक्रेटरी संधू साहब फरमा रहे हैं कि केवल 300 मीटर चौड़ाई का क्षेत्र प्रभावित है। जब दो अधिकारियों के आंकलन में ही जमीन आसमान का अंतर है तो फिर क्या उम्मीद करें।  

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंंत्री कार्यालय को जोशीमठ की गंभीर स्थिति को कमतर बताया गया? ऐसा करने के पीछे क्या मंशा हो सकती है यह स्पष्ट नहीं है।

जोशीमठ पहुंचे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का कहना है कि नगर का करीब 60-70 फीसदी हिस्सा भू-घंसाव और दरारों की जद में आ चुका है। कई वार्डों में साल भर पहले ही दरारें आनी शुरू हो गई थीं और ये लगातार बढ़ती जा रही हैं। अगर प्रशासन समय रहते जाग जाता तो आज आनन-फानन में लोगों से घर खाली नहीं कराने पड़ते। लोग लंबे समय से जोशीमठ की समस्या को उठा रहे है लेकिन राज्य सरकार लगातार अनदेखी करती रही। 

जोशीमठ में मौजूद सीपीआई (माले) के गढ़वाल मंडल सचिव इंद्रेश मैखुरी ने बताया कि जोशीमठ का शायद ही कोई हिस्सा बचा है जहां मकानों या जमीन में दरारें नहीं हैं। बल्कि रोज नए-नए क्षेत्रों में दरारें देखी जा रही हैं। यह किसी बड़ी आपदा या भूकंप की पूर्व चेतावनी हो सकती है। मैखुरी के अनुसार, यह कहना पूर्णतया गलत है कि सिर्फ 350 मीटर चौड़ाई का क्षेत्र प्रभावित है। जबकि मुख्यमंत्री के सामने गढ़वाल आयुक्त 40 फीसदी आबादी को बचाने की बात कर रहे थे।  

रविवार को जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, चमोली की ओर से जारी बुलेटिन के अनुसार, जोशीमठ के 9 वार्डों के कुल 603 भवनों में दरारें पायी गई हैं जबकि 4 वार्डों में अत्यधिक भू-धंसाव वाले 6 क्षेत्रों को असुरक्षित घोषित करते हुए तत्काल खाली कराने के आदेश दिए गये हैं। बुलेटिन से स्पष्ट है कि जोशीमठ में आपदा का दायरा सभी 9 वार्डों तक फैला चुका है। जोशीमठ नगरपालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पवार ने बताया कि जोशीमठ के कुल 9 में से 5 वार्ड भू-धंसाव से अत्यधिक प्रभावित हैं जबकि जबकि 2 वार्ड कम और 2 आंशिक रूप से प्रभावित हैं। इस लिहाज से भी देखें तो जोशीमठ का आधे से ज्यादा क्षेत्र आपदा की चपेट में दिखायी पड़ता है।

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