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पर्यावरण

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कारगर तकनीकी उपायों की जरूरत  

विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट-2023 के अनुसार, पर्यावरण से जुड़े छह जोखिमों को अगले दशक के लिए शीर्ष दस जोखिमों में स्थान दिया है। इन जोखिमों में प्राकृतिक आपदाओं में तेजी, चरम मौसम की घटनाएं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने में विफलता शामिल है। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और विकास आवश्यकताओं के लिए जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता ने हमारे वैश्विक भविष्य को खतरे में डाल दिया है।

आज के दौर में जब प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, पर्यावरण की रक्षा के लिए नवीन उपाय विकसित करना आवश्यक हो गया है। 2022 में विकास की सीमाओं पर एमआईटी की 1971 में की गई शोध के पुनरावलोकन में पाया गया कि उत्सर्जन को कम करने, खाद्य प्रणालियों के ह्रास को रोकने और नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए तकनीकी नवाचार कारगार हो सकते हैं। उत्सर्जन का प्रबंधन करने और टिकाऊ प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का तेजी से इस्तेमाल किया जा रहा है। यह जलवायु परिवर्तन से सफलतापूर्वक निपटने में मददगार हो सकता है।

उत्सर्जन की रिमोट सेंसिंग: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की रियल टाइम मैपिंग

ग्रीनहाउस गैसों के दुष्प्रभाव और पर्यावरण पर उनके प्रभाव से हम अच्छी तरह वाकिफ हैं। औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से ही कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) व मीथेन (CH4) ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में शीर्ष योगदानकर्ता रहे हैं। जैसे-जैसे उपभोक्ता और निवेशक की पसंद जलवायु-प्रेरित हो रही है, हितधारक प्रभावी जलवायु कार्रवाई तैयार करने के लिए उत्सर्जन के स्रोतों व पैटर्न की निगरानी तथा समझ विकसित अपने उत्सर्जन पदचिह्न को कम करने के प्रयास कर रहे हैं। रिमोट सेंसिंग तकनीक ने वास्तविक समय में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को ट्रैक और मैप करने की हमारी क्षमता को बढ़ाया है, जिससे सूचित निर्णय लेने के लिए वास्तविक समय में निगरानी संभव हो गई है।

रिमोट सेंसिंग वह प्रक्रिया है जो किसी क्षेत्र में भूमि उपयोग, भूमि परिवर्तन, उत्सर्जन, गर्मी इत्यादि भौतिक विशेषताओं की निगरानी के लिए स्थिर सेंसर के साथ उपग्रहों, विमानों और ड्रोन जैसी हवाई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती है। कॉपरनिकस सेंटिनल -5 पी उपग्रह CO2 जैसे प्रदूषकों को मापने में मदद करता है। ये उपकरण शोधकर्ताओं को उत्सर्जन प्रवृत्तियों, कारणों का निरीक्षण करने और भविष्यवाणियां करने के लिए बड़े पैमाने पर डेटा उपलब्ध कराते हैं। नीति निर्माता नियामक परिवर्तन करने, उत्सर्जन कम करने और समग्र जलवायु लक्ष्यों में योगदान करने के लिए इन रुझानों को अपना सकते हैं। इसके अलावा, औद्योगिक समूहों, शहरों, लैंडफिल आदि से सटीक डेटा एकत्र करने के लिए हवाई जहाज और ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है। उदाहरण के लिए – पूर्वी हिमालय, इसके पहाड़ी इलाकों में, भूमि उपयोग पैटर्न डेटा की जानकारी प्राप्त करने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों में ड्रोन तैनात किए जा सकते हैं। 

सटीक कृषि: हरित कल के लिए टिकाऊ खेती

भारत के लिए कृषि अभी भी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार बनी हुई है। इससे न केवल भोजन और आजीविका प्राप्त होती है बल्कि यह एक प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में भी कार्य करती है। लेकिन कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को मिट्टी के क्षरण, प्रदूषण, वनों की कटाई और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, विशेष रूप से मीथेन के रूप में महत्वपूर्ण पर्यावरणीय हानि भी उठानी पड़ती है। वर्तमान में कृषि भारत के उत्सर्जन का 15% हिस्सा है और ऊर्जा क्षेत्र के बाद देश के उत्सर्जन में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण अस्थिर कृषि पद्धतियों और अनियमित मौसम के कारण उत्पादकता और पर्यावरण में गिरावट आई है।

सटीक कृषि में पारंपरिक खेती के नकारात्मक परिणामों को कम करने की क्षमता है। यह नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर खेती के लिए एक सुव्यवस्थित दृष्टिकोण लाती है। इसका उद्देश्य पारंपरिक तरीकों में इस्तेमाल होने वाले इनपुट के स्तर को कम करते हुए फसल की पैदावार और लाभप्रदता को बढ़ाना है। फसल और मिट्टी के स्वास्थ्य, मौसम के पैटर्न और भूमि उत्पादकता पर महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र करने के लिए रिमोट सेंसिंग और जीपीएस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है।

फसल की पैदावार और भूमि उपयोग के पूर्वानुमानित मॉडल बनाने तथा कृषि स्थिरता को बढ़ाने के लिए सेंसर का उपयोग किया जाता है। न्यूनतम जुताई फसल स्वास्थ्य के लिए ऊपरी मिट्टी को बरकरार रखने में मददगार होती है। इन सभी तकनीकी उपायों में खेतों को कार्बन उत्सर्जक से कार्बन सिंक में बदलने की क्षमता है, जबकि खनिज और पानी के उपयोग को कम किया जा सकता है। खनिज और पानी का अत्यधिक दोहन खेती योग्य भूमि के मरुस्थलीकरण की बड़ी वजह है।

पीटलैंड्स का संरक्षण: पृथ्वी के कार्बन भंडारगृहों की रक्षा

उत्सर्जन से निपटने के लिए एक अन्य प्रमुख पारिस्थितिक उपाय पीटलैंड हैं। पीटलैंड एक प्रकार का स्थलीय आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र है जहां जल जमाव की स्थिति पौधों की सामग्री के कुल अपघटन को रोकती है जिसके परिणामस्वरूप पीट संचय होता है। वैश्विक भूमि सतह का कम से कम 3 प्रतिशत पीटलैंड कवर के अंतर्गत है। ये पारिस्थितिकी तंत्र महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करते हैं जैसे कार्बन पृथक्करण, वनस्पतियों और जीवों को आवास समर्थन, पीने का पानी, भोजन, साथ ही मनोरंजक सेवाएं।

आज पीटलैंड अत्यधिक दबाव में हैं क्योंकि कृषि भूमि की मांग को पूरा करने के लिए उन्हें सूखा दिया जाता है। इससे बड़ी मात्रा में संग्रहीत कार्बन वायुमंडल में जारी होता है और इस प्रकार यह जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। पुन: आर्द्रता और वनीकरण के माध्यम से पीटलैंड को बहाल करने और टिकाऊ भूमि उपयोग प्रथाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है ताकि पीटलैंड को बढ़ती कृषि आवश्यकताओं के अनुचित दबाव का सामना न करना पड़े। 

भविष्य के लिए समग्र तकनीकी दृष्टिकोण

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण से उत्पन्न चुनौतियां और भी तीव्र होती जा रही हैं। उनसे निपटने के लिए हमें अपने संरक्षण प्रयासों में नवीन उपायों को अपनाने की आवश्यकता है। रिमोट सेंसिंग, सटीक कृषि का लाभ उठाना और पीटलैंड का संरक्षण ऐसे कई उपायों में से कुछ हैं।

समग्र दृष्टिकोण रखने का अर्थ है एक स्थायी वैश्विक भविष्य के लिए पारंपरिक संरक्षण रणनीतियों के साथ-साथ तकनीकी नवाचार का उपयोग करना। हमें संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों और तौर-तरीकों को विकसित करने में एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

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