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विधानसभा बैकडोर भर्ती: कड़ा लेकिन अधूरा फैसला

विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने अपने निर्णय पर अडिग रहने का संदेश दिया, मगर कार्रवाई पर सवाल भी उठ रहे हैं

सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले की जानकारी विधानसभा अध्यक्ष खुद सोशल मीडिया पर दें, यह कोई आम बात नहीं है। लेकिन उत्तराखंड विधानसभा से हटाए गए 228 कर्मियों की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज होने की जानकारी खुद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडरी भूषण ने सोशल मीडिया पर दी। इससे मामले की गंभीरता का अंदाजा लगा सकते हैं। ये वही भर्तियां हैं जिन्हें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और मौजूदा कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ‘नियमानुसार’ बता रहे हैं जबकि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने ‘कठोर निर्णय’ लेने की बात करते हुए 2016 के बाद हुई 228 कर्मियों की नियुक्ति को निरस्त कर दिया था। जाहिर है इससे भाजपा की अंदरुनी राजनीति में उबाल आना ही था।

विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी बैकडोर भर्ती मामले में कड़ी कार्रवाई का संदेश देने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन उनकी कोशिशों को झटका तब लगा जब विधानसभा के बर्खास्त कर्मचारी हाईकोर्ट से स्टे ले आए। लेकिन ऋतु खंडरी अपने फैसले पर अडिग रही और हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील की। 24 नवंबर को हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 228 कर्मियों को हटाने के फैसले को सही ठहराया। इस फैसले को चुनौती देते हुए बर्खास्त कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुग्रह याचिका (एसएलपी) दायर कर दी। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इससे हटाए गए कर्मचारियों को झटका लगा है जबकि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी अपने निर्णय पर अडिग रहने का संदेश देने में कामयाब रही हैं। कई लोग उनमें भावी मुख्यमंत्री की संभावना देख रहे हैं।

कार्रवाई में भेदभाव का आरोप

विधानसभा से 228 कर्मियों को हटाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है, लेकिन साथ ही भाजपा और धामी सरकार कई सवालों से घिर गई है। इनमें दो सवाल प्रमुख हैं। पहला, विधानसभा भर्ती में अनियमितताओं के लिए कर्मचारियों को तो बर्खास्त कर दिया, लेकिन जिन नेताओं और अफसरों ने भर्तियां की उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? दूसरा, सिर्फ 2016 के बाद की भर्तियों पर गाज क्यों गिरी, जबकि राज्य गठन के बाद विधानसभा की सभी तदर्थ भर्तियों में गड़बड़ियां हुई थीं? इन दोनों सवालों पर विपक्ष सत्ताधारी भाजपा और धामी सरकार को घेरने में जुटा है। इससे भाजपा की अंदरुनी राजनीति में भी हलचल मचनी तय है। क्योंकि बर्खास्त कर्मियों में भाजपा नेताओं के नजदीकी लोग भी शामिल हैं। उन्हें अदालत से राहत मिलने की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है। 

विपक्ष इसे भेदभावपूर्ण कार्रवाई करार देते हुए सवाल उठा रहा है। उत्तराखंड क्रांति दल का कहना है कि अगर 2016 के बाद की भर्तियां अवैध हैं तो अवैध भर्तियां करने वाले मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई। उक्रांद ने विधानसभा भर्ती घोटाले की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज से कराने की मांग उठायी है।  

भ्रष्टाचारियों से हो रिकवरी: थापर  

बैकडोर भर्तियों में भ्रष्टाचार को लेकर नैनीताल हाईकोई में जनहित याचिका दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2016 से हुई भर्तियों पर याचिका खारिज होने से बैकडोर भर्तियों में भ्रष्टाचार के आरोप पुख्ता हो गए हैं। जिन मंत्रियों और अफसरों ने यह लूट का रास्ता बनाया उनसे सरकारी धन की रिकवरी होनी चाहिए। साथ ही 2016 से पूर्व की भर्तियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई, यह भी बताना होगा। जबकि यह घोटाला 2000 में राज्य बनने से लेकर चला आ रहा था, जिस पर अपने करीबियों को नौकरी दिलाने वाले विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों ने भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है।

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