अडानी समूह पर उठे सवालों के बीच कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर हल्ला बोल दिया है। कांग्रेस के महासचिव (संचार) जयराम रमेश का कहना है कि अडानी समूह पर लगे गंभीर आरोपों के बीच मोदी सरकार ने चुप्पी साध रखी है जिससे किसी सांठ-गांठ का साफ इशारा मिल रहा है। प्रधानमंत्री ये कहकर बच नहीं सकते कि ‘हम अडानी के हैं कौन’। आज से इस मुद्दे पर कांग्रेस प्रधानमंत्री से प्रतिदिन तीन प्रश्न पूछेगी।
जयराम रमेश की ओर से जारी बयान में आज जो तीन सवाल उठाए गए हैं, उनमें पहला सवाल गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी के बारे में है, जिनका नाम पनामा पेपर्स और पेंडोरा पेपर्स में बहामास और ब्रिटिश वर्जिन द्वीपसमूहों में ऑफशोर कंपनियों को संचालित करने वाले व्यक्ति के रूप में सामने आया था। उन पर “ऑफशोर शेल कंपनियों के एक विशाल मायाजाल” के माध्यम से “स्टॉक में खुल्लम-खुल्ला हेरफेर करने” और “खातों में धोखाधड़ी” में संलिप्त होने का आरोप लगा है। जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि एक ऐसा बिजनेस घराना जिससे आपकी सार्वजनिक नजदीकियां हैं; वह गंभीर आरोपों के घेरे में हैं, तो इस संबंध में आपके द्वारा करवाई जा रही जांच की निष्पक्षता और ईमानदारी पर आप थोड़ा प्रकाश डालिए।
कांग्रेस का प्रधानमंत्री से दूसरा सवाल है कि वर्षों से प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और खुफिया राजस्व निदेशालय जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को डराने-धमकाने और उन व्यापारिक घरानों को दंडित करने के लिए किया है। अडानी समूह के खिलाफ वर्षों से लगाए जा रहे गए गंभीर आरोपों की जांच के लिए क्या कार्रवाई की गई है? क्या आपकी देखरेख में किसी निष्पक्ष और न्यायोचित जांच की उम्मीद की जा सकती है?
कांग्रेस ने तीसरा सवाल उठाया कि यह कैसे संभव है कि भारत के सबसे बड़े बिजनेस घराना में से एक, जिसे हवाई अड्डों और बंदरगाहों में एकाधिकार स्थापित करने की अनुमति दी गई है, लगातार आरोपों के घेरे में होने के बावजूद इतने लंबे समय से गंभीर जांच से बचता चला आ रहा है? अन्य व्यापारिक समूहों को हल्के आरोपों के लिए एजेंसियों ने परेशान किया है और उन पर छापे मारे गए। क्या अडानी समूह उस व्यवस्था के लिए आवश्यक था जिसने इन वर्षों के दौरान “भ्रष्टाचार-विरोधी” बयानबाजी का भरपूर लाभ उठाया है?
