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पर्यावरण

जोशीमठ आपदा पर वैज्ञानिक रिपोर्ट पब्लिक, भूधंसाव की वजह बताई लेकिन NTPC को क्लीन चिट

हाईकोर्ट की फटकार के बाद उत्तराखंड सरकार ने जोशीमठ भूधंसाव पर 8 वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी हैं। कुल 718 पन्नों की रिपोर्ट में जोशीमठ धंसाव के कई कारण बताये, लेकिन एनटीपीसी की परियोजना को इसकी वजह नहीं माना है। लूज सेडीमेंट (मोरेन) पर बसे जोशीमठ में जमीन के भीतर पानी के रिसाव, धारण क्षमता से अधिक निर्माण, आबादी के बढ़ते बोझ, सीवर सिस्टम की कमी और प्राकृतिक जल स्रोतों के रास्तों में रूकावट जैसे कई कारणों को चिन्हित किया है। साथ ही जोशीमठ में नए निर्माण पर पूरी तरह रोक लगाने का सुझाव दिया है।

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (NIH) की रिपोर्ट में एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना को क्लीन चिट देने का प्रयास किया है। जबकि जोशीमठ के आपदा प्रभावित लोग भूधंसाव के लिए एनटीपीसी के प्रोजेक्ट को वजह मानते हैं। स्थानीय लोगों के विरोध को देखते हुए परियोजना का काम रूकवा दिया था।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जोशीमठ की जेपी कॉलोनी में रिसते पानी के नमूने एनटीपीसी प्रोजेक्ट साइट से मेल नहीं खाते हैं। बल्कि जेपी कॉलोनी में पानी का रिसाव ऊपरी इलाके से संबंध रखता है। एनआईएच, रूड़की ने संभावना जतायी कि किसी उपसतह चैनल के अवरोध के कारण जमीन के भीतर पानी का अस्थायी भंडारण बन गया, जो अंततः फट गया।

जीएसआई ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ की दरारों के लिए एनटीपीसी के प्रोजेक्ट को वजह नहीं माना है। टनल निर्माण से नुकसान की संभावना को इस आधार पर खारिज किया है कि टनल जोशीमठ शहर से 1.1 किलोमीटर पीछे की तरफ दरार वाले क्षेत्रों से काफी नीचे है।

नए निर्माण पर रोक का सुझाव

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) ने अपनी 130 पेज की रिपोर्ट में कहा है कि जोशीमठ अपनी वहन क्षमता को कहीं अधिक पार कर चुका है। अब वहां किसी नए निर्माण की अनुमति नहीं देनी चाहिए। एनडीएमए ने जोशीमठ को “कोई नया निर्माण नहीं” क्षेत्र घोषित करने का सुझाव दिया है। सीबीआरआई, रूड़की ने जोशीमठ से आबादी का घनत्व चरणबद्ध तरीके से कम करने की सिफारिश की है। घनी आबादी और बहुमंजिला इमारतों वाले क्षेत्रों में अधिक दरारें मिली हैं।

भूस्खलन के मलबे पर बसा है जोशीमठ

वैज्ञानिक अध्ययनों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि जोशीमठ भूस्खलन से बने मोरेन (हिमनद के साथ आए मलबे) पर बसा है। ज्यादातर दरारें उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक 50-60 मीटर चौड़ाई वाले क्षेत्र में 50 मीटर गहराई तक मिली हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ की जमीन ढीली मिट्टी, मलबे और बोल्डर से बनी है। इसमें आतंरिक क्षरण के कारण पूरी संरचना में अस्थिरता आ जाती है जो भूधंसाव का कारण बनती है।   

सिर्फ 37 फीसदी मकान रहने योग्य

सीबीआईआर ने जोशीमठ के 2.8 वर्गमीटर क्षेत्र में 2364 भवनों का मूल्यांकन किया था। इनमें से 1 फीसदी को ध्वस्त करना पड़ेगा, जबकि 20 फीसदी मकान रहने लायक नहीं बचे हैं। करीब 37 फीसदी भवन ही रहने योग्य हैं। बाकी मकानों में सुधार करना होगा। जीएसआई ने जोशीमठ के विभिन्न हिस्सों में स्थलीय-निगरानी की सलाह दी है।

जल निकासी पर ध्यान देने की जरूरत

जोशीमठ में भवनों, होटलों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से निकलने वाले पानी की निकासी बड़ी समस्या है। एनआईएच ने अपनी रिपोर्ट में, जोशीमठ के ऊपरी इलाकों से आने वाले पानी और शहर के कचरे के सुरक्षित निस्तारण पर ध्यान देने पर जोर दिया है। केंद्रीय भूजल बोर्ड ने सुझाव दिया कि रिटेंशन दीवार के साथ-साथ विभिन्न स्थलाकृतिक स्तरों पर खाइयों का निर्माण किया जा सकता है ताकि भूजल का दबाव खत्म हो सके।

भूधंसाव के कारण

जोशीमठ शहर में भूधंसाव के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग ने ड्रेनेज वाटर के रिसाव के कारण ढाल अस्थिरता, ढीली और असंगठित मोरेन (पुराने भूस्खलन के कारण) और आसपास के क्षेत्रों में फ्लश फ्लड को वजह माना है। आईआईटी, रूड़की ने अपनी रिपोर्ट में कहा है भूधंसाव का मुख्य कारण जमीन की सतह में जल निकासी से आंतरिक क्षरण प्रतीत होता है। ऐसा वर्षा जल के घुसने, बर्फ के पिघलने या भवनों से अपशिष्ट जल की निकासी के कारण हो सकता है। हालांकि धंसाव एक निरंतर परिघटना है, लेकिन जल निकासी को नियंत्रित कर इसकी रोकथाम की जा सकती है।

हाईकोर्ट की सख्ती के बाद सार्वजनिक हुई रिपोर्ट

जनवरी के आखिर में आठ वैज्ञानिक संस्थानों सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-रुड़की, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने जोशीमठ भूधंसाव पर अपनी रिपोर्ट नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी को सौंप दी थी। लेकिन राज्य सरकार ने इन रिपोर्टों को गोपनीय रखा था। इस पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सवाल उठाते हुए रिपोर्ट सार्वजनिक करने को कहा था। अल्मोड़ा निवासी पीसी तिवारी ने याचिका दायर का रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी।

उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने अपनी वेबसाइट पर ये रिपोर्ट अपलोड कर दी हैं। अलग-अलग संस्थानों की ये रिपोर्ट जोशीमठ आपदा को अलग-अलग नजरिये से देखती हैं। इनमें जोशीमठ में पैदा स्थिति से उबरने और ऐसी आपदाओं से बचने के लिए उपाय भी बताए गये हैं।

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