कोरोना काल में मां को खोने के बाद 11 साल का बच्चा रुड़की के पास धार्मिक स्थल पिरान कलियर में दरगाह के आसपास भीख मांगने को मजबूर था। असल में वह करोड़ों की जायदाद का मालिक निकला तो सुर्खियों में छा गया। उसके दादा ने मरने से पहले वसीयत में अपनी आधी जायदाद उसके नाम कर दी थी। परिवार के लोग जोरशोर से उसकी तलाश में जुटे गये। इत्तेफाक देखिए, वह बच्चा कलियर की सड़क पर घूमते हुए मोबिन नाम के युवक को दिखा, जिसने उसे पहचान लिया। परिजनों को खबर गई और वे उसे अपने साथ ले गए। बच्चे के नाम सहारनपुर जिले के पांडोली गांव में 5 बीघा जमीन और एक मकान है।
यह कहानी है शाहजेब की। जिसने मात्र 11 साल की उम्र में ही जिंदगी के बड़े उतार-चढ़ाव देख लिए। उसके पिता नावेद मर्चेंट नेवी में इंजीनियर थे। माता-पिता में अनबन हुई तो मां इमराना बेटे शाहजेब को लेकर अपने मायने यमुनानगर चली गई। वहां से वह किसी को बिना बताए पिरान कलियर आकर रहने लगी। पत्नी और बेटे के जाने के बाद पिता नावेद की 2019 में मौत हो गई। इसी बीच, कोविड संक्रमण से इमराना की भी मौत हो गई। बालक शाहजेब लावरिस हो गया। वह कलियर में चाय की दुकानों पर काम करने या दरगाह के आसपास भीख मांगने को मजबूर था।
गम में दादा की हो गई थी मौत
बेटे की मौत और बहू-पोते के घर छोड़कर चले जाने से शाहजेब के दादा मोहम्मद याकूब को गहरा सदमा लगा और इसी गम में वे चल बसे। हिमाचल के सरकारी स्कूल से रिटायर मोहम्मद याकूब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि जब कभी भी उनका पोता वापस आए तो एक मकान और पांच बीघा जमीन उसे दे दी जाए। इस तरह मोहम्मद याकूब ने अपनी आधी जायदाद पोते शाहजेब के नाम कर देखभाल का जिम्मा अपने छोटे भाई शाह आलम को दिया था। साल 2021 में याकूब की मौत के बाद यह वसीयत अमल में आई तो शाहजेब की तलाश जोरशोर से की जाने लगी।
कैसे मिला गुमशुदा बालक
शाहजेब के परिजन काफी समय से उसकी तलाश में जुटे थे। दादा के छोट भाई शाह आलम ने पोते और बहू की तलाश के लिए सोशल मीडिया में उनकी फोटो डाली। इसी दौरान उनका रिश्तेदार मोबिन कलियर आया हुआ था। वहां बाजार में घूमते हुए उसने शाहजेब को देख लिया। पूछने पर उसने अपनी मां और गांव का नाम सही बताया। इसकी सूचना मोबिन ने सहारनपुर में उसके परिजनों को दी। पोते के मिलने की खबर पाते ही शाह आलम कलियर आए और शाहजेब को अपने साथ सहारनपुर ले गये। शाहजेब के घर आने से उनके घर ईद जैसा माहौल है। हालांकि, उसके माता-पिता और दादा अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन एक लावारिस जिंदगी से बाहर निकल वह अपने परिजनों के पास पहुंच गया है। शाह आलम का कहना है कि शाहजेब के दादा और पिता उनके साथ ही रहते थे और वे उसकी अच्छी परवरिश करेंगे। शाहजेब पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहता है।
प्रशासन पर सवाल
मासूम शाहजेब की किस्मत भले ही बदल गई हो लेकिन कोविड में मां की मौत और फिर सड़कों पर लावारिस की तरह घूमने, भीख मांगने के वाकये ने सरकारी सिस्टम पर भी सवाल उठा दिए हैं। कोविड में अनाथ हुए बच्चों के लिए प्रदेश सरकार ने वात्सल्य योजना शुरू की थी। कई बच्चों को पुष्कर मामा और रेखा बुआ का वात्सल्य मिला लेकिन शाहजेब तक यह स्नेह क्यों नहीं पहुंच पाया। क्या कोविड के दौरान हुई मौतों की सही जानकारी सिस्टम को नहीं थी या फिर शाहजेब के अनाथ होने का प्रशासन ने संज्ञान ही नहीं लिया। वहीं बच्चों के लिए तमाम अभियान चलाने वाली मित्र पुलिस का मुक्ति अभियान भी इस मासूम शाहबाज की जिंदगी नहीं बदल सका।
