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संघर्ष

अंकिता हत्याकांड की जांच पर फैक्ट फाइंडिंग टीम ने उठाए गंभीर सवाल

जांच में खामियों और लापरवाही को नेशनल फैक्ट फाइंडिंग टीम ने उजागर किया

महिला एवं मानवाधिकार संगठनों की नेशनल फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अंकिता भंडारी हत्याकांड पर अपनी रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में मामले की जांच पर गंभीर सवाल उठाते हुए एसआईटी पर जांच में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। साथ ही गवाहों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई है। संगठनों की ओर से अंकिता हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाने की तैयारी की जा रही है।

मंगलवार को नई दिल्ली के प्रेस क्लब में फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी करते हुए पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव कविता श्रीवास्तव ने कहा कि अंकिता की हत्या आपराधिक न्याय प्रणाली की ‘पूर्ण विफलता’ को दर्शाती है। अंकिता के पिता को एफआईआर दर्ज कराने के लिए 72 घण्टे तक इधर-उधर भटकना पड़ा। राज्य में जीरो नम्बर एफआईआर क्यों नहीं हो रही है। साथ ही 1997 से बनी विशाखा गाइडलाइन और 2006 से बना कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न विरोधी कानून उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग में लागू क्यों नहीं है, इस पर भी फैक्ट फाइंडिंग टीम ने सवाल उठाए हैं।

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने केवल मेडिकल राय के आधार पर पुलिस द्वारा यह निष्कर्ष निकालने पर सवाल उठाया है कि अंकिता के साथ बलात्कार नहीं हुआ। अंकिता का शव छह दिनों तक पानी में पड़ा था, इसलिए भी सबूत नष्ट हो सकते हैं। ऐसे में मेडिकल साक्ष्य को इस मामले में अंतिम कथन नहीं माना जा सकता है। मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों, गवाहों और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों में बार-बार यह कहा है कि भले ही पीड़िता के शरीर पर कोई चोट न हो, बलात्कार का आरोप तब भी बरकरार रहेगा।

अंकिता भंडारी हत्याकांड में किसी वीआईपी का जिक्र बार-बार आ रही है, लेकिन पुलिस का कहना है कि वीआईपी शब्द का इस्तेमाल प्रेसिडेंशियल सुइट में ठहरने वाले लोगों के लिए किया जा रहा था। वीआईपी के नाम का खुलासा क्यों नहीं हुआ, इसे लेकर भी फैक्ट फाइंडिंग टीम ने सवाल उठाया है। स्थानीय विधायक रेनू बिष्ट के इशारे पर जिस तरह मृतका अंकिता भंडारी के कमरे वाले हिस्से में बुलडोजर चलाया गया, वह स्पष्ट तौर पर साक्ष्य मिटाने की कोशिश थी। उन्हें अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है? अपराधस्थल को सील क्यों नहीं किया गया? रिसॉर्ज पर बुलडोजर चलाने की अनुमति किसने दी? इसे लेकर रिपोर्ट में पुलिस- प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े किए गये हैं।

उत्तराखंड महिला मंच की उमा भट्ट ने कहा कि अंकिता हत्याकांड का मामला जन दबाव की वजह से दब नहीं पाया। जबकि पुलिस ने हर स्तर पर देरी की। एसआईटी बनाई गई पर उसने भी जांच में लापरवाही बरती। रिजॉर्ट के कर्मचारी अभिनव, कुश व अन्य के साथ-साथ अंकिता का दोस्त पुष्प इस मामले में मुख्य गवाह है। रिपोर्ट में गवाहों को सुरक्षा नहीं मिलने पर भी चिंता जाहिर की गई है।

एडवोकेट वृन्दा ग्रोवर ने कहा कि अंकिता भंडारी के केस में आईपीसी की धारा 370 भी लगनी चाहिए, क्योंकि पुलकित ने अंकिता को बंधक बनाया था। इस मसले में जितने भी कर्मचारियों, अधिकारियों ने कोताही बरती है उन पर 166 (A) लगनी चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने कहा कि सभी प्रकार के पर्यटन में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनने की जरूरत है। लड़कियां आगे बढ़ेंगी तभी इस तरह के अपराध रूकेंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यस्थलों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशाखा गाइडलाइन लागू किए जाने के निर्देशों के बावजूद उत्तराखंड में पर्यटन क्षेत्र में इसे लागू नहीं किया गया है। कई होटल और रिजार्ट मालिकों व कर्मचारियों को विशाखा गाइडलाइन की कोई जानकारी नहीं है। नेशनल फैक्ट फाइंडिंड टीम ने अंकिता भंडारी हत्याकांड को लेकर उत्तराखंड महिला आयोग की निष्क्रयता पर भी सवाल उठाए हैं। साथ ही उत्तराखंड सरकार से महिला नीति तैयार करने की मांग की है।

उत्तराखंड महिला मंच की पहल पर गठित इस टीम में उत्तराखंड महिला मंच की मलिका विर्दी, विजया नैथानी, ऐपवा की मालती हलदार, आइसा की शिवानी पांडे, महिला किसान अधिकार मंच की हीरा जंगपांगी, एनएपीएम की ऋचा सिंह और जागोरी की मेहविश खान समेत छह राज्यों से 30 प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था। इस दल ने 27 से 29 अक्टूबर तक उत्तराखंड का दौरा कर अंकिता हत्याकांड से जुड़े विभिन्न तथ्य जुटाए थे।

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