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पर्यावरण

मलबे में धंसे दिल्ली-दून एलिवेटेड रोड के पिलर, परियोजना पर उठे सवाल

एलिवेटेड कॉरिडोर की साइट पर जमा मलबे से परियोजना को लेकर चिंताएं बढ़ी

फोटो और वीडियो: रीनू पॉल
फोटो और वीडियो: रीनू पॉल

उत्तर भारत के पर्वतीय राज्यों में भारी बारिश के बाद बाढ़ और भूस्खलन से जो तबाही मची, उससे बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को लेकर सवाल उठ रहे हैं। एनएचएआई की महत्वकांक्षी परियोजना दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के तहत बन रहे एलिवेटेड कॉरिडोर को लेकर पर्यावरणविद आगाह करते रहे हैं। लेकिन उन चिंताओं को नजरंदाज पर 210 किलोमीटर के दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का काम आगे बढ़ रहा है। इसमें 12 किलोमीटर पिलर के ऊपर उठी एलिवेटेड रोड बरसाती मोहन राव नदी और मोहंड के जंगल में बन रही है। नदी के तट को समतल कर उस पर पिलर उठाए गए। ये पिलर नदी के बीचोंबीच या किनारों पर हैं। पिछले हफ्ते हुई बारिश को देखते हुए एलिवेटेड रोड को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

बरसात में मोहन राव और अन्य छोटी नदियां (सुख राव, सोलनी, छिल्लावाला राव, छिकना राव, बिंज राव, अंधेरी राव, गज राव आदि) भरकर, तेज बहाव से बह रही हैं। मोहन राव पर खड़े पिलर मलबे में धंस गये हैं। कुछ पिलर के बेस पानी के तेज बहाव की चपेट में आ चुके हैं। निर्माणाधीन परियोजना के इस हाल को देखकर पर्यावरणविदों की चिंताएं सही साबित होती नज़र आ रही हैं। क्योंकि एलिवेटेड कॉरिडोर की साइट पर भारी वर्षा से नदी क्षेत्र में मलबा जमा हो गया है। देखना है कि इससे निर्माणाधीन परियोजना पर कितना असर पड़ेगा। खबर है कि इसके आकलन का जिम्मा एनएचएआई ने आइआइटी रुड़की के विशेषज्ञों को दिया है।

देश भर में 2020 में लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की सरकार ने‌ दिल्ली-देहरादून के बीच सड़क यात्रा का समय बचाने के लिए ऐलिवेटेड कोरिडोर प्रस्तावित किया था। करीब 1620 करोड़ की इस एलिवेटेड परियोजना से पहाड़ और जंगल के नुकसान को लेकर शुरू से ही चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं।

देहरादून के जागरूक नागरिकों द्वारा एलिवेटेड कॉरिडोर के लिए 75 साल से ज्यादा पुराने साल (Shorea robusta) के पेड़ों को काटने का विरोध किया गया। परियोजना के लिए कुल 2,572 पेड़ों का कटान प्रस्तावित था, जिसमें से 1,622 साल के पेड़ थे। बच्चे, बूढ़े और नवयुवकों ने अपना विरोध ह्यूमन चेन बना कर दर्शाया। इस मुद्दे पर देहरादून की पर्यावरण कार्यकर्ता रीनू पाॅल ने एक जनहित याचिका (PIL) भी दायर की थी।

पर्यावरण और वैज्ञानिक तथ्यों को नकारकर इस परियोजना को मंजूरी देने के दुष्परिणाम दिख रहे हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में नदी-नालों के इर्द-गिर्द अंधाधुंध निर्माण से मची तबाही सबके सामने है। यदि अब भी विचार न किया गया तो किसी बड़े नुकसान की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। कहीं यह एलिवेटेड कॉरिडोर भी उत्तराखंड में चारधाम सड़क परियोजना की तरह आपदा को निमंत्रण ना बन जाए!

  • मेघा प्रकाश

    मेघा प्रकाश एक स्वतंत्र पत्रकार है। स्वतंत्र पत्रकारिता करने से पहले वह भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु में सहायक संपादक के पद पर कार्यरत थीं। पिछले डेढ़ दशक से पर्यावरण, विज्ञान और विकास से जुड़े मामलों को कवर कर रही हैं।

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