उत्तराखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र मात्र दो दिन चला, जबकि कई अहम मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पायी। यह सत्र 5 दिसंबर तक प्रस्तावित था लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी का कहना है कि जब विधायी कार्य दो दिन में ही पूरे हो गये तो करदाताओं के पैसे की बर्बादी कर सत्र चलाना बेमानी है। समय से पहले सत्रावसान को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार पर मुद्दों से भागने का आरोप लगाया है।
दो दिन चले सत्र में महिलाओं को राजकीय सेवाओं में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण और जबरन धर्मांतरण रोकने संबंधी विधेयक सहित कुल 14 विधेयक बिना किसी चर्चा के पारित हो गए। इस दौरान सरकार ने अनुपूरक बजट भी पेश किया, लेकिन प्रदेश में जंगली जानवरों के बढ़ते हमलों तथा कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार से जुड़े कई अहम मुद्दों पर चर्चा नहीं हुई।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष करन माहरा ने मुख्यमंत्री पर मैदान छोड़ने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रचंड बहुमत की सरकार का मुखिया होने के बावजूद वह जनता के सवालों का सामना नहीं कर पाये। करन माहरा ने विधानसभा अध्यक्ष के बयान दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि सत्र चलाना बेईमानी नहीं बल्कि सत्र ना चलाना जनता के साथ धोखा है। विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों द्वारा 619 प्रश्न लगाए गए थे क्या संभव है दो दिन के सत्र में इतने प्रश्नों के जबाव दिये जा सके? सरकार के पास जनता के सवालों के जवाब नहीं हैं, इसलिए सत्र दो दिन में समाप्त कर दिया।
विधानसभा सत्र को दो दिन में निपटाने के सवाल पर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने कहा कि सत्र करदाताओं के पैसे से चलता है। जब कोई बिजनेस नहीं होगा तो सत्र चलाना करदाताओं के साथ बेमानी होगा। वह किसी के राजनीतिक एजेंडे के लिए सत्र नहीं चलाएंगी। उन्होंने कहा कि दो दिन के सत्र में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई, साथ ही महिला आरक्षण बिल पारित होना एक ऐतिहासिक कदम है।
शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष ने सरकार को अंकिता भंडारी केस, प्रदेश की बिगड़ती कानून-व्यवस्था, भर्ती घोटालों और गैरसैंण में विधानसभा सत्र नहीं करवाने के मुद्दे पर जमकर घेरा। लेकिन प्रदेश में जंगली जानवरों के बढ़ते हमले, बेरोजगारों की समस्याओं और पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क हादसों समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पायी। हैरानी की बात है कि पिछले दिनों गुलदार के हमलों में तीन बच्चों की मौत हुई, प्रदेश में जंगली जानवरों का आतंक मचा है, फिर भी यह मुद्दा विधानसभा में नहीं गूंजा। विधानसभा अध्यक्ष भले ही सत्रावसान के लिए टैक्सपेयर्स का पैसा बचाने का तर्क दे रही हैं, लेकिन जनहित से जुड़े मुद्दों पर विधानसभा में चर्चा ना होना लोकतंत्र के लिए ज्यादा नुकसानदेह है।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य का कहना है कि सरकार जनहित के सवालों से भाग रही है इसलिए सात दिन के सत्र को दो दिन में समाप्त कर दिया। इन दो दिनों में भी विपक्ष को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका नहीं मिला। बहुत से सवाल अनुत्तरित रह गए। सरकार मुद्दों पर सार्थक चर्चा ही नहीं करना चाहती है।
समय से पहले सत्रावसान के पीछे सरकार की सवालों से बचने की मंशा नजर आती है। अगर सप्ताह भर तक सत्र चलता तो कई दिनों तक सरकार को विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ता। इन हमलों से बचने के लिए ही सोमवार को सत्र नहीं रखा जाता है क्योंकि सोमवार को मुख्यमंत्री से जुड़े विभागों पर सवाल-जवाब होने होते हैं।
ये विधेयक हुए पारित
– उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिक आरक्षण) विधेयक।
– उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक।
– उत्तराखंड विनियोग (2022-23 का अनुपूरक) विधेयक।
– बंगाल, आगरा और आसाम सिविल न्यायालय (उत्तराखंड संशोधन और अनुपूरक अनुबंध) विधेयक।
– उत्तराखंड दुकान और स्थापन (रोजगार विनियमन और सेवा शर्त) संशोधन विधेयक।
– पेट्रोलियम एवं ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक।
– भारतीय स्टांप उत्तराखंड संशोधन विधेयक।
– उत्तराखंड माल एवं सेवा कर संशोधन विधेयक।
– उत्तराखंड कूड़ा फेंकना एवं थूकना प्रतिषेध संशोधन विधेयक।
– उत्तराखंड जिला योजना समिति संशोधन विधेयक।
– पंचायती राज संशोधन विधेयक।
– हरिद्वार विश्वविद्यालय विधेयक।
– उत्तराखंड नगर एवं ग्राम नियोजन व विकास संशोधन विधेयक।
– उत्तराखंड विशेष क्षेत्र (पर्यटन का नियोजित विकास और उन्नयन) संशोधन विधेयक।
