सरकार ने गैर-यूरिया उर्वरकों की कीमतों पर प्राइस कैपिंग कर दी है। इसके तहत पोटेशियम और पोटाश (पीएंडके) उर्वरक निर्माता कंपनियों के लिए प्रॉफिट मार्जिन तय कर दिया गया है। अब ये कंपनियां 12 प्रतिशत से ज्यादा प्रॉफिट नहीं ले पाएंगी।रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने उर्वरकों की बिक्री से अनुचित लाभ कमाने के मामलों पर रोक लगाने की मंशा से यह दिशानिर्देश जारी किया है। नए नियम एक अप्रैल 2023 यानी पूर्ववर्ती समय से लागू होंगे।
क्यों हुआ लागू
उर्वरक मंत्रालय द्वारा जारी सर्कुलर के अनुसार आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत प्राइस कैपिंग फॉर्मूला लागू होगा। उर्वरक निर्माता कंपनियों को इसे अनिवार्य रूप से पालन करना होगा और नियमित रूप से मंत्रालय को सूचित भी करना होगा। पोषक तत्व पर आधारित सब्सिडी (एनबीएस) नीति के तहत पीएंडके उर्वरकों की अधिकतम खुदरा कीमतों (एमआरपी) की समीक्षा के बाद, नए दिशानिर्देश 18 जनवरी, 2024 को जारी किए गए हैं।
किस उर्वरक पर कितना मार्जिन ले पाएंगी कंपनियां
नोटिफिकेशन के अनुसार डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) जैसे पीएंडके उर्वरकों के आयातकों को आठ प्रतिशत तक लाभ मार्जिन की अनुमति है। वहीं उर्वरक विनिर्माताओं को 10 प्रतिशत और एकीकृत विनिर्माताओं के लिए 12 प्रतिशत लाभ मार्जिन तक की मंजूरी दी गई है। यही नहीं अगर उर्वरक कंपनियां अनुचित लाभ कमाएंगी तो उसे लौटाना होगा। ऐसा न होने पर मंत्रालय इसकी वसूली करेगा या भविष्य के सब्सिडी भुगतान में इसे समायोजित कर दिया जाएगा।
अभी कीमत को लेकर क्या है मॉडल
यूरिया के मामले में एमआरपी सरकार तय करती है और कंपनियों को सब्सिडी के रूप में उत्पादन लागत और खुदरा कीमतों के बीच अंतर का भुगतान करती है।हालांकि, एनबीएस योजना के तहत पीएंडके उर्वरकों की एमआरपी को विनिर्माता ही तय करते हैं जबकि सरकार हर साल नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी), पोटेशियम (के) और सल्फर (एस) पर सब्सिडी दरों की घोषणा करती है। बिक्री की कुल लागत के आधार पर पीएंडके उर्वरकों के एमआरपी के औचित्य का मूल्यांकन किया जाएगा। कंपनियां लागत लेखा परीक्षक की रिपोर्ट के आधार पर अर्जित ‘अनुचित लाभ’ का खुद मूल्यांकन करेंगी और पिछले वित्त वर्ष के लिए इसे 10 अक्टूबर तक मंत्रालय को वापस कर देंगी।