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दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए आएगी नई स्कीम, यूपी-बिहार सहित इन राज्यों के किसानों पर फोकस

अक्टूबर में भले ही खुदरा महंगाई ने राहत दी है लेकिन दालों की महंगाई सरकार के लिए सिरदर्द बन गई है। दालों की महंगाई दर इस दौरान 18.79 फीसदी पहुंच गई है। इसमें भी दालों की महंगाई शहरी लोगों को ज्यादा परेशान कर रही है। शहरों में दालों की महंगाई 21.07 फीसदी रही है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 17.68 फीसदी है। साफ है दालों की महंगाई अभी भी चुनौती बनी हुई है। ऐसे में अब सरकार इसके लिए स्थायी समाधान को ढूढ़ने की कोशिश कर रही है। सरकार की योजना दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनने की है। जिससे दालों की कीमतों को कंट्रोल में रखा जा सके। सरकार ये कदम ऐसे समय उठा रही है जब अनियमित मौसम और दूसरी अधिक लाभकारी फसलों के लिए कई किसानों ने दालों की खेती से दूरी बना रखी है।

क्या है तैयारी

केंद्र सरकार चुनिंदा राज्यों पर फोकस करते हुए दालों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक योजना तैयार कर रही है। इसके लिए सरकार भारत दाल उत्पादन स्वावलंबन अभियान लांच कर सकती है। इस योजना का मकसद बफर मानदंडों को हासिल करना और आयात निर्भरता को खत्म करना है। इसके तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड,गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में उत्पादन बढ़ाने पर फोकस किया जाएगा।

घटेगा बफर स्टॉक

रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (NAFED) को इस योजना के लिए प्राथमिक एजेंसी के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। इसके तहत नाफेड को अरहर का उत्पादन 12 लाख टन (एमटी) और मसूर का उत्पादन 5 लाख टन तक बढ़ाने के लिए किसानों की पूरी उपज खरीदने और उनका प्री-रजिस्ट्रेशन करने का अधिकार दिया जा सकता है। फिलहाल तुअर के लिए बफर आवश्यकता 10 लाख टन और मसूर के लिए 5 लाख टन है। सरकार का लक्ष्य योजना शुरू होने के बाद तुअर का बफर स्टॉक 8 लाख टन और मसूर का बफर स्टॉक 4 लाख टन तक करना है।

दालों का घटा उत्पादन और बढ़ा आयात

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जून में समाप्त हुए पिछले सीजन में 33 लाख टन तुअर और 1.5 लाख टन मसूर का उत्पादन हुआ, जबकि उससे पिछले वर्ष 42 लाख टन और 13 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था। जबकि तुअर की घरेलू मांग 44 लाख टन और मसूर की मांग 24 लाख टन है। वहीं 2023-24 फसल वर्ष के लिए पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार प्रतिकूल मौसम और किसानों के कपास और सोयाबीन जैसी फसलों की ओर रुख करने के कारण खरीफ दालों का उत्पादन पिछले वर्ष के 78 लाख टन की तुलना में कम होकर 71 लाख टन रह सकता है।

2011 के बाद से कुछ सुधार के बावजूद, दालों की मांग और सप्लाई के बीच का अंतर लगातार बढ़ गया है, जिससे पिछले कुछ वर्षों में 20-25 लाख टन सालाना दालों का आयात हो रहा है।

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