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क्या अमेरिका को खुश करने के लिए भारतीय किसानों, मुर्गीपालकों के हित दांव पर लगे?

MODI BIDEN

नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन को भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन इसी दौरान, अमेरिका के साथ हुए भारत के एक समझौते की मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं हुई, जबकि भारतीय किसानों और मुर्गीपालकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

भारत ने अमेरिका के कृषि और पॉल्ट्री उत्पादों के लिए अपना बाजार खोलने का फैसला किया है। दोनों देशों के बीच 2007 से विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में लंबित विवादों को सुलझाने पर सहमति बन गई है। अब अमेरिका आयात शुल्क में कटौती का लाभ उठाकर अपने कृषि और पॉल्ट्री उत्पाद भारतीय बाजार में पहुंचा सकेगा। यह घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पहली भारत यात्रा के मौके पर हुई। इसकी जानकारी अमेरिकी ट्रेड रिप्रजेंटेटिव (यूएसटीआर) की प्रेस विज्ञप्ति से सामने आई।

यूएसटीआर की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, भारत और अमेरिका डब्ल्यूटीओ में लंबित विवाद सुलझाने पर सहमत हो गये हैं। समझौते के तहत, भारत कई अमेरिकी उत्पादों जैसे फ्रोजन टर्की, फ्रोजन डक, फ्रैश ब्लबैरी और क्रेनबैरी, फ्रोजन ब्लूबैरी और कैनबैरी, ड्राई ब्लूबैरी और क्रेनबैरी और प्रोसेस्ड ब्लूबैरी और क्रैनबैरी पर आयात शुल्क घटाने पर सहमत हो गया है। इससे अमेरिकी कृषि उत्पादकों के लिए भारतीय बाजार में मौके बढ़ेंगे।

राष्ट्रपति बाइडन जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने 8 सितंबर को नई दिल्ली पहुंचे थे। उसी दिन पीएम आवास में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। भारत यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गर्मजोशी दिखाई। इससे पहले गत जून में भारत और अमेरिका के बीच डब्ल्यूटीओ में जारी छह विवादों को खत्म करने पर सहमति बनी थी। इसके तहत भारत कई अमेरिकी उत्पादों जैसे सेब, चना, दाल, बादाम और अखरोट पर आयात शुल्क घटाने पर राजी हुआ था। यह फैसला भी भारतीय किसानों के हितों के प्रतिकूल माना जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के किसान अमेरिकी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के सेब बागवानों भी परेशान हैं।

अमेरिकी ट्रेड रिप्रजेंटेटिव कैथरीन ताइ का कहना है कि डब्ल्यूटीओ में लंबित विवादों का हल होना भारत-अमेरिकी संबंधों में मील का पत्थर है। कई अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क घटने से भारत के महत्वपूर्ण बाजार में अमेरिकी उत्पादकों की पहुंच बढ़ेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जून में अमेरिका यात्रा, राष्ट्रपति बाइडन की भारत यात्रा के साथ ये घोषणाएं दोनों देशों के मजबूत संबंधों को दर्शाती हैं।

सवाल है कि व्यापार विवादों के समाधान के लिए भारत और अमेरिका के बीच जो समझौते हुए, उससे भारत को क्या लाभ होगा? या सिर्फ कूटनीतिक मोर्चे पर अमेरिका को खुश करने के लिए भारतीय किसानों और पॉल्ट्री उत्पादकों के हितों का दांव पर लगाया गया? आशंका है कि अमेरिका सस्ते चिकन लेग्ज व अन्य पॉल्ट्री उत्पादों से भारतीय बाजारों को भर डालेगा। 2007 में ऐसा हो चुका है जब यूपीए सरकार को अमेरिकी पॉल्ट्री उत्पादों के आयात पर रोक लगानी पड़ी थी। अमेरिकी वाशिंगटन एपल से कड़ी प्रतिस्पर्धा घरेलू सेब उत्पादक पहले ही झेल रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बाइडन की मुलाकात के बाद भारत और अमेरिका की ओर जारी संयुक्त बयान में द्विपक्षीय व्यापार से जुड़े विवादों के समाधान पर प्रसन्नता जताई गई। लेकिन कृषि और पॉल्ट्री से जुड़े समझौतों से भारत को क्या लाभ होगा, इसका कोई जिक्र नहीं है। जबकि अमेरिका ने 8 सितंबर को ही भारत के साथ पॉल्ट्री विवाद के समाधान का ऐलान कर दिया था। अगर अमेरिका की विज्ञप्ति ना आती तो देश को पता ही ना चलता कि क्या समझौता हुआ है।

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