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संघर्ष

धरना-प्रदर्शन करने पर क्यों मजबूर हुए गेस्ट टीचर?

एक तरफ सरकार नए गेस्ट टीचर भर्ती करने जा रही है, वहीं पहले से कार्यरत गेस्ट टीचर अपनी मांगों को लेकर आंदोलन की राह पर हैं

देहरादून। माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए दूरदराज के इलाकों में सेवाएं देने वाले अतिथि शिक्षक आज शिक्षा निदेशालय के सामने धरने पर बैठे हैं। माध्यमिक अतिथि शिक्षक संघ, उत्तराखंड ने राज्य सरकार पर गेस्ट टीचरों के भविष्य से खिलवाड़ करने का आरोप लगाते हुए आंदोलन की राह पकड़ ली है। गेस्ट टीचरों को तदर्थ नियुक्ति और उनके लिए नीति बनाने की मांग को लेकर अतिथि शिक्षकों ने 13 दिसंबर से अनिश्चितकालीन धरने का ऐलान किया था। आज यह धरना शुरू हो गया।

माध्यमिक अतिथि शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अभिषेक भट्ट ने बताया कि वर्षों से गेस्ट टीचर प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों के स्कूलों में सेवाएं दे रहे हैं, किन्तु सरकार ने अतिथि शिक्षकों को तदर्थ नियुक्ति नहीं दी और ना ही उनके सुरक्षित भविष्य के लिए कोई नीति नहीं बनाई। सरकार गेस्ट टीचरों के लिए कोई नीति बनाए बिना ही नए गेस्ट टीचर भर्ती करने जा रही है। यह गेस्ट टीचरों के साथ खिलवाड़ है। भट्ट बताते हैं कि पिछले साल 4 जुलाई को धामी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में गेस्ट टीचरों के पदों को रिक्त पद नहीं मानने का निर्णय लिया गया था, लेकिन आज तक उस निर्णय के अनुसार शासनादेश जारी नहीं हुआ। कई बार मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से गेस्ट टीचरों के लिए नीति बनाने की मांग की गई, किन्तु आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। गेस्ट टीचरों ने धामी सरकार को भाजपा का चुनावी घोषणा-पत्र भी याद दिलाया, जिसमें उनका भविष्य सुरक्षित करने का वादा किया गया था।

उत्तराखंड में फिलहाल करीब 3700 गेस्ट टीचर कार्यरत हैं। इनकी मांग है कि आठ साल से अधिक समय से सेवा दे रहे अतिथि शिक्षकों को तदर्थ नियुक्ति दी जाए। अतिथि शिक्षक संघ का आरोप है कि सरकार उनके हितों की अनदेखी कर रही है। पुराने गेस्ट टीचरों के भविष्य की परवाह किए बिना 2300 नई भर्तियां करने जा रही है। अतिथि शिक्षक संघ की मांग है कि सरकार पहले गेस्ट टीचरों के लिए नियमावली बनाए और तब नई भर्तियां की जाएं।

मंगलवार से माध्यमिक शिक्षा निदेशालय, ननूरखेड़ा देहरादून पर शुरू हुए गेस्ट टीचरों के धरने में प्रदेश के विभिन्न जिलों से शिक्षक पहुंचे। उनका कहना है कि पड़ोसी हिमाचल समेत कई राज्यों में अतिथि शिक्षक नियमित हुए हैं लेकिन उत्तराखंड सरकार इस बारे में गंभीर नहीं है। मजबूरी में उनके सामने आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं था।

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