Connect with us

Hi, what are you looking for?

English

पर्यावरण

हरेला पर कदली लगाने से जुड़ी लोक परंपरा

हरेला पर बागेश्वर जिले में कपकोट क्षेत्र के लोग कदली (केला) लगाने की प्रथा निभाते हैं

सभी फोटो साभार: माँ भगवती मन्दिर समिति, पोथिंग
सभी फोटो साभार: माँ भगवती मन्दिर समिति, पोथिंग

उत्तराखंड में हरेला लोकपर्व सावन मास के आरंभ का द्योतक है। राज्य के पर्वतीय इलाकों में हरेला से कई लोक मान्यताएं जुड़ी हैं। कुमाऊं अंचल में जहां अल्मोड़ा,‌ हल्द्वानी में शिव-पार्वती के डिगारे (मिट्टी की मूर्ति) बनाकर पूजन किया जाता है, वहीं बागेश्वर जिले के कपकोट खंड में हरेले पर केले का पेड़ लगाने की प्रथा है। कपकोट से लगभग 4 किलोमीटर दूर पोथिंग गांव में उत्सव का माहौल है। पोथिंग से करीब 11 किलोमीटर दूर उतरौडा गांव से केले के दो पेड़ रोपण के लिए लाए जा रहे हैं।

 

लोक मान्यता के अनुसार, ये दो केले के पेड़ पहाड़ों की आराध्य नन्दा देवी और उनके भाई लाटू देवता के प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि जब लामा (भोट जाति) का शासन था। मां नन्दा देवी उतरौडा से पोथिंग जा रही थी, तभी लामाओं ने उनका पीछा किया। नन्दा देवी ने उनसे बचने के लिए मंदिर के प्रांगण में कदली (केला) वृक्ष की ओट में छिपकर पूरी रात वहीं बिताई। सुबह गांव के लोगों ने नन्दा को अपनी बेटी की तरह दुल्हन के श्रृंगार के साथ पोथिंग गांव के लिए विदा किया। तब से यह प्रतीकात्मक परंपरा चलती आ रही है।

पोथिंग में माँ भगवती मन्दिर के व्यवस्थापक, पूजा प्रशासन कमलेश गड़िया बताते हैं कि सम्पूर्ण परिक्रमा में ग्रामवासियों का एक दल कदली वृक्ष लेने पोथिंग से कपकोट होते हुए उतरौड़ा को जाता है। आषाढ़ मास के अंतिम दिन, हरेला की पूर्व संध्या, पेड़ लगाने के लिए निश्चित है।

रात को पोथिंग गांव के लोग उतरौड़ा में प्रवास करते हैं। अगली सुबह हरियाली का प्रतीक हरेला के दिन, प्रातः अपने वाद्य यंत्रों के साथ सरयू नदी के तट पर जाकर स्नान करके उतरौड़ा में स्थित देवी मंदिर के प्रांगड़ में पूरे विधि विधान के साथ दो कदली वृक्ष अपने साथ लेकर आते हैं, जिनका चयन देव डांगर करते हैं। 

मान्यता है कि ढोल-दमाऊ, भुकौर, झांझर आदि पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ देवता अवतरित होते हैं। जौ का जुनियार केले के पेड़ की तरफ उछाल कर देवता केले के पेड़ का चयन करते हैं। उन पेड़ों को जड़ से निकाल कर सफेद (लाटू देवता) और लाल चुनरी (नन्दा) को लपेट कर पोथिंग की तरफ ले जाते हैं। कमलेश गड़िया बताते हैं कि बड़े परम्परागत ढंग से उतरौड़ा के निवासियों के द्वारा दुःख के साथ कदली वृक्ष को तैयार करके विदा किया जाता है।

कदली वृक्षों के साथ पोथिंग के ग्रामवासी दल जो उतरौड़ा गए थे, गैनाड गांव की खड़ी चढ़ाई पर चढ़ते हुए पनाती में पहुंचते हैं। पनाती कदली वृक्ष का पूर्व से निर्धारित विश्राम स्थान है। यहां ज्यादा देर नही रुकते, उसके बाद पोथिंग (वीथी में) प्रवेश होता है। यहां पुनः निश्चित स्थान पर विश्राम किया जाता है। विश्राम करने के बाद ढलान की ओर रवाना होते हैं । इसके आगे दो और विश्राम स्थल हैं — एक मां भगवती घराट (गड्यार) एवं बिनाड़ी। फिर उस स्थान पर जहां पूरा गांव स्वागत के लिए तैयार खड़ा रहता है। 

विधि-विधान से बड़े हर्ष के साथ कदली वृक्ष का पुनः रोपण किया जाता है। परम्परा और प्रकृति का संगम पेड़ लगाने का उत्सव हरेला क्यव कौतिक के रूप में भी मनाया जाता है। 

कमलेश गड़िया बताते हैं कि रोपण के दो महीने बाद, नन्दा भगवती अष्टमी पर माँ भगवती के स्वरूप का श्रृंगार इन्हीं केले के पेड़ों से किया जाएगा। उनके अनुसार, “हमारा धर्म, हमारे संस्कार पौधे लगाने को त्यौहार और उत्सव बना देती है और सन्देश देता है कि पेड़ हमारी जिंदगी में कितने मायने रखते हैं। इसलिए हम अपने धर्म और रीति रिवाज पर गर्व करते हैं।”

*******

  • मेघा प्रकाश

    मेघा प्रकाश एक स्वतंत्र पत्रकार है। स्वतंत्र पत्रकारिता करने से पहले वह भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु में सहायक संपादक के पद पर कार्यरत थीं। पिछले डेढ़ दशक से पर्यावरण, विज्ञान और विकास से जुड़े मामलों को कवर कर रही हैं।

संबंधित पोस्ट

News

मंगलवार को किसानों पर आंसू गैस छोड़ने और उनकी मांगों को पूरा नहीं करने पर विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरा है। कांग्रेस, समाजवादी...

समाचार

पीएम किसान सम्मान निधि के लाभार्थियों के लिए अच्छी खबर है। सरकार अब ई-केवाईसी के लिए देश के कई गांवों में कैम्प लगाने जा...

News

सोमवार को किसान और केंद्रीय मंत्रियों के बीच हुई वार्ता फेल होने के बाद, मंगलवार को पंजाब से दिल्ली की ओर कूच कर रहे...

News

हरियाणा में रबी सीजन के दौरान राज्य सरकार किसानों से सरसों, चना, सूरजमुखी, समर मूंग की खरीद एमएसपी पर करेगी। इसके अलावा सरकार मार्च...