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मौसम की मार झेल रहे पर्वतीय किसानों पर अमेरिकी आयात की मार का डर!

सेब, अखरोट और बादाम समेत 8 अमेरिकी उत्पादों से भारत ने 20% अतिरिक्त शुल्क हटाया

https://www.flickr.com/photos/sandeepachetan/15547711178
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ऐसे समय जब हिमालय प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के सेब उत्पादक मौसम की मार झेल रहे हैं, उन पर अमेरिकी आयात की मार भी पड़ सकती है। भारत सरकार ने सेब, अखरोट और बादाम सहित आठ अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क हटा दिया है। यह निर्णय भारत और अमेरिका के बीच विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में लंबित विवादों के समाधान के तहत हुआ। अतिरिक्त शुल्क हटने से भारतीय बाजार में अमेरिकी उत्पादों की पहुंच बढ़ेगी, जबकि भारतीय सेब उत्पादकों को प्रीमियम सेगमेंट में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना पड़ सकता है। हालांकि, भारत सरकार का दावा है कि इस कदम से घरेलू उत्पादकों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।

भारत ने साल 2019 में स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों पर अमेरिका द्वारा शुल्क बढ़ोतरी के विरोध में अमेरिकी सेब और अखरोट पर 20-20 फीसदी और बादाम पर 20 रुपये प्रति किलोग्राम का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया था। यह शुल्क सर्वाधिक तरजीही देश (MFN) शुल्क के अलावा था।

केवल अतिरिक्त शुल्क हटा, MFN शुल्क रहेगा

इस बारे में स्पष्टीकरण जारी करते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने कहा है कि भारत ने सेब, अखरोट और बादाम सहित आठ अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क को वापस ले लिया है। क्योंकि अमेरिका स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों को अपने यहां बाजार पहुंच देने पर सहमत हो गया है। सेब, अखरोट और बादाम पर MFN (सर्वाधिक तरजीही देश) शुल्क में कोई कटौती नहीं की गई है।अमेरिकी सेब और अखरोट पर 50 फीसदी व 100 फीसदी तथा बादाम पर 100 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से MFN शुल्क अब भी लागू रहेगा। केवल अतिरिक्त शुल्क हटाया गया है।

सेब आयात नीति में बदलाव करते हुए भारत सरकार ने इस साल 8 मई को भूटान के अलावा सभी देशों से आयातित सेब पर 50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से न्यूनतम आयात मूल्य (MEP) लागू कर दिया था। यह MEP अमेरिका और अन्य देशों (भूटान को छोड़) से आने वाले सेब पर भी लागू है। इसका मकसद कम गुणवत्ता वाले सेब की भारत में डंपिंग को रोकना है।

प्रीमियम सेग्मेंट में बढ़ेगा कॉम्पीटिशन

हिमाचल में सेब उत्पादक किसानों के नेता और संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने असलीभारत.कॉम को बताया कि अमेरिकी सेब पर 20 फीसदी अतिरिक्त आयात शुल्क हटने से प्रीमियम सेब के बाजार में कॉम्पीटिशन बढ़ेगा। इस साल मौसम की मार के चलते सेब उत्पादकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इसलिए हिमाचल के किसान सेब पर आयात शुल्क बढ़ाकर 100 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने शुल्क बढ़ाने की बजाय 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क को समाप्त कर दिया।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने केंद्र से अमेरिका से आयातित सेब, अखरोट और बादाम पर अतिरिक्त शुल्क हटाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार की अपील करते हुए कहा कि सरकार को विदेशियों को खुश करने के बजाय अपने लोगों को खुश करने की कोशिश करनी चाहिए।

सरकार का दावा

भारत सरकार का दावा है कि अमेरिकी सेब, अखरोट और बादाम पर अतिरिक्त शुल्क हटने से घरेलू उत्पादकों पर कोई नकारात्मक असर नहीं होगा। बल्कि इससे प्रीमियम सेगमेंट में कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेहतर उत्‍पाद मिलेंगे। अमेरिकी सेब, अखरोट और बादाम भी अन्य सभी देशों की तरह ही समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करेंगे।

अतिरिक्त शुल्क का अन्य देशों को लाभ

वाणिज्य मंत्रालय का कहना है कि अमेरिकी सेब और अखरोट के आयात पर अतिरिक्त शुल्क लगाने से भारतीय बाजार में अमेरिका की हिस्सेदारी घटी जबकि इसका फायदा तुर्की, इटली, चिली, ईरान और न्यूजीलैंड जैसे देशों ने उठाया। अमेरिका के अलावा अन्य देशों से भारत को सेब आयात में हुई बढ़ोतरी से यह स्पष्ट होता है। अमेरिका के अलावा अन्य देशों से भारत में सेब का आयात वित्त वर्ष 2018-19 के 16 करोड़ डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 29 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। तुर्की, इटली, चिली, ईरान और न्यूजीलैंड भारत के प्रमुख सेब निर्यातक के तौर पर उभरे हैं। इस तरह अमेरिका के कब्जे वाले बाजार में इन देशों ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली।

आयात पर निर्भरता

अखरोट के मामले में भारत का आयात वित्त वर्ष 2018-19 के 3.51 करोड़ डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 5.39 करोड़ डॉलर हो गया। चिली और यूएई भारत को सर्वाधिक अखरोट निर्यात करने वाले देश बन गये। इसी तरह, पिछले तीन वर्षों में भारत में लगभग 2.33 लाख टन बादाम का आयात हुआ है, जबकि देश में बादाम का उत्पादन केवल 11 हजार टन हुआ। भारत बादाम के आयात पर अत्यधिक निर्भर है। इसलिए सरकार का दावा है कि अतिरिक्त शुल्क हटाने से उन देशों के बीच अच्छी प्रतिस्पर्धा होगी जो भारत को इन उत्पादों का निर्यात कर रहे हैं।

लेकिन सवाल है कि जिन चीजों में हम आयात पर निर्भर हैं, उनका घरेलू उत्पादन बढ़ाकर अपने किसानों का भला क्यों नहीं कर पा रहे हैं? क्या आयात निर्भरता बढ़ाकर हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं? क्या अमेरिकी आयात का मुकाबला करना और चिली, तुर्की या ईरान के आयात से प्रतिस्पर्धा करना एकसमान है?  

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