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खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता या आयात निर्भरता? नीतिगत विरोधाभास जारी

खाद्य तेलों की महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटा दी है

केंद्र सरकार ने रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाने का फैसला किया है। इन खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी को 17.5 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया है। सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की उपलब्धता बढ़ाने और महंगाई रोकने के लिए यह कदम उठाया है। लेकिन यह फैसला किसानों के साथ-साथ स्वदेशी रिफाइनरी उद्योग की चिंताएं बढ़ा सकता है। महंगाई नियंत्रण के लिए सरकार अक्सर कृषि उपज के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट और स्टॉक लिमिट का सहारा लेती है, जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ता है। जबकि आम जनता तक पूरा फायदा भी नहीं पहुंचता है।   

भारत में आमतौर पर कच्चे सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल का आयात होता है। लेकिन सरकार ने इंपोर्ट ड्यूटी रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल पर घटाई है, जिसका आयात नहीं होता है। इसलिए खुदरा बाजार में खाद्य तेल की कीमतों पर इस कटौती का असर पड़ने की संभावना कम है। अब रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल पर सेस मिलाकर 13.7 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगेगी। जबकि प्रमुख कच्चे खाद्य तेलों पर 5.5 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी प्रभावी है। इंपोर्ट ड्यूटी में इस अंतर की वजह से कच्चे ऑयल का आयात कर उसे रिफाइन करना सीधे रिफाइंड ऑयल का आयात करने के मुकाबले सस्ता पड़ता है। इसलिए फिलहाल देश में रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल का आयात नहीं हो रहा है।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता के अनुसार, नए बदलाव का मार्केट सेंटिमेंट पर असर पड़ सकता है लेकिन इससे आयात को बढ़ावा नहीं मिलेगा। मेहता ने एक बयान जारी कर कहा कि सरकार खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित रखना चाहती है। लेकिन इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती के बावजूद रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल का आयात करना कारोबार के लिहाज से फायदेमंद नहीं होगा। हालांकि, कुछ समय के लिए मार्केट सेंटिमेंट पर असर पड़ सकता है।

रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का सीधा मतलब इनके आयात को बढ़ावा देना है। यह देश के तिलहन उत्पादक किसान के हितों के खिलाफ होगा। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खाद्य तेलों की कीमतें गिरने से किसानों को पहले ही उनकी उपज के दाम नहीं मिल पा रहे हैं। सरसों और सूरजमुखी के दाम MSP से काफी नीचे चल रहे हैं। अगर इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती का असर घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर पड़ता है तो किसानों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। कमजोर मानसून के चलते खरीफ की बुआई पहले ही पिछड़ रही है। ऐसे में अगर खाद्य तेलों के दाम और गिरे तो किसानों का तिलहन की फसलों से मोहभंग हो सकता है।

किसानों पर महंगाई नियंत्रण की मार

भारत अपनी जरूरत का करीब 60 फीसदी खाद्य तेल आयात के जरिए पूरा करता है। इसलिए खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता घटाने और तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। ऐसे में खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाना और आयात को बढ़ावा देना नीतिगत विरोधाभास का उदाहरण है। खासकर ऐसे समय जब देश के किसान MSP के लिए आंदोलन की राह पर हैं, सरकर खाद्य तेलों के आयात को बढ़ावा देकर क्या संदेश देना चाहती है? सवाल यह भी है कि महंगाई नियंत्रण की कोशिशों का खामियाजा किसानों को ही क्यों उठाना पड़ता है?

रिफाइनरी उद्योग के लिए खतरे की घंटी

रिफाइंड और कच्चे खाद्य तेलों के बीच इंपोर्ट ड्यूटी के अंतर का कम होना स्वदेशी रिफाइनरी उद्योग के लिए भी खतरे की घंटी है। रिफाइनरी उद्योग अक्सर इस अंतर को बढ़ाने की मांग करता है। देश में रिफाइंड पामोलीन के आयात को भी इसी तरफ बढ़ावा दिया गया था। अब रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटने से रिफाइनरी उद्योग की चिंता बढ़ सकती है। अक्टूबर 2021 में रिफाइंड सोयाबीन और सनफ्लावर ऑयल पर इंपोर्ट ड्यूटी 32.5 फीसदी से घटाकर 17.5 फीसदी की गई थी। तब भी महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए यह निर्णय लिया गया था।

खाद्य तेलों का आयात 18% बढ़ा

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, नवंबर 2022 से मई 2023 के बीच भारत में खाद्य तेलों का आयात गत वर्ष की तुलना में 18 फीसदी बढ़कर 91.7 लाख टन तक पहुंच गया है। इस दौरान रिफाइंड पामोलिन का आयात भी तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2021-22 के दौरान भारत में कुल 140 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था, जिसमें से 56 फीसदी पाम ऑयल था।

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