मोदी सरकार एक्शन मोड में है। मोर्चा इस बार चुनाव नहीं महंगाई है। शुक्रवार को केंद्र सरकार ने महंगाई पर लगाम कसने के लिए ताबड़तोड़ 3 फैसले लिए। इन फैसलों से साफ है कि सरकार को महंगाई का डर सता रहा है। और यह डर ऐसे समय में हैं, जब आम चुनाव बेहद करीब आ गए हैं। अगले 5 महीने में लोक सभा चुनाव हैं और उन फसलों के दाम बढ़ने का खतरा बढ़ गया है जिनका सीधा असर चुनावों में दिखेगा। ये फसलें प्याज, दाल, गेहूं हैं । जो हर आम आदमी के खाने की थाली का अहम हिस्सा है। और अगर इनके दाम बेकाबू हुए तो दोनों वक्त खाने के समय, आम आदमी को महंगाई याद आएगी। इसी को देखते हुए सरकार ने जहां प्याज के निर्यात पर मार्च 2024 तक प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं गेहूं की जमाखोरी रोखने के लिए स्टॉक लिमिट को कम कर दिया गया है। और मटर के आयात को फिर से खोल दिया गया है, जिससे दालों की महंगाई को कंट्रोल में लाया जा सके।
प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध
सरकार ने सबसे पहले आज दोपहर प्याज पर अहम फैसला लिया और उसने 31 मार्च, 2024 तक प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इस समय राजधानी दिल्ली में रिटेल बाजार में 70-80 रुपये प्रति किलोग्राम पर प्याज बिक रही हैं। वहीं देश के दूसरे इलाकों में भी प्याज कीमतें 60 रुपये के पार हैं। सरकार ने इस साल 28 अक्टूबर से 31 दिसंबर तक प्याज के निर्यात पर 800 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) भी तय किया था। इसके अलावा खुदरा बाजारों में 25 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर बफर प्याज स्टॉक बेचने का फैसला किया था।
लेकिन उससे बात नहीं दिखी और अक्टूबर में प्याज की थोक महंगाई दर 62.60 फीसदी उच्चस्तर पर पहुंच गई। खरीफ फसल सत्र में प्याज की खेती के रकबे में भी कमी की खबरें हैं। चालू वित्त वर्ष में एक अप्रैल से चार अगस्त के बीच देश से 9.75 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था। निर्यात मूल्य के लिहाज से बांग्लादेश, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में सबसे ज्यादा प्याज का निर्यात होता है।
गेहूं पर स्टॉक लिमिट घटी
दूसरा अहम कदम गेहूं पर उठाया गया है। सरकार का दावा है कि जमाखोरी रोकने और कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए उसने तत्काल प्रभाव से थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और प्रसंस्करण फर्मों के लिए गेहूं का भंडार (स्टॉक) रखने की लिमिट में कटौती कर दी है। व्यापारियों एवं थोक विक्रेताओं के लिए गेहूं भंडारण की सीमा 2,000 टन से घटाकर 1,000 टन कर दी गई है। इसी तरह खुदरा विक्रेता के लिए भंडारण सीमा 10 टन के बजाय पांच टन, बड़े खुदरा विक्रेताओं के प्रत्येक डिपो के लिए पांच टन और उनके सभी डिपो के लिए यह सीमा कुल मिलाकर 1,000 टन होगी।
केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने सख्ती पर कहा कि गेहूं के कृत्रिम अभाव की स्थिति को रोकने और जमाखोरी पर लगाम लगाने के लिए ऐसा किया गया है। संशोधित स्टॉक सीमा तत्काल प्रभाव से लागू होगी। उन्होंने कहा कि गेहूं के कृत्रिम अभाव की स्थिति को रोकने और जमाखोरी पर लगाम लगाने के लिए ऐसा किया गया है। संशोधित स्टॉक सीमा तत्काल प्रभाव से लागू होगी।
सरकार को किस बात का है डर
गेहूं का प्रसंस्करण करने वालीं कंपनी वित्त वर्ष 2023-24 के बाकी महीनों के अनुपात में मासिक स्थापित क्षमता का 70 प्रतिशत रख सकती हैं। व्यापारियों को अपना स्टॉक संशोधित सीमा तक कम करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाएगा।एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, गेहूं भंडारण करने वाली सभी फर्मों को गेहूं स्टॉक सीमा संबंधी पोर्टल पर अपना पंजीकरण करना होगा और हर शुक्रवार को अपने स्टॉक के बारे में जानकारी देनी होगी।पोर्टल पर पंजीकृत न कराई गई या स्टॉक सीमा का उल्लंघन करने वाली फर्म के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
खाद्य मंत्रालय ने 12 जून को अनाज कारोबारियों पर मार्च, 2024 तक स्टॉक रखने की सीमा लगा दी थी। इसके बाद 14 सितंबर को इस सीमा को और भी कम करके व्यापारियों एवं थोक विक्रेताओं और उनके सभी डिपो में बड़े खुदरा विक्रेताओं के लिए स्टॉक लिमिट 2,000 टन कर दी थी। सरकार ने मई, 2022 से ही गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है।
जून में सरकार ने करीब 15 साल बाद गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाई थी। असल में कीमतें बढ़ने और अलनीनो की वजह से उत्पादन कम होने की आशंका है। देश में इस समय सालाना करीब 108 मिलियन टन गेहूं की खपत है। और सरकार को करीब 113 टन गेहूं उत्पादन की उम्मीद है।
मटर का आयात खुला
तीसरी फैसला मटर पर लिया गया है। सरकार ने पीली मटर के आयात पर लगे 50 प्रतिशत के बुनियादी सीमा शुल्क तथा कृषि अवसंरचना एवं विकास उपकर को पूरी तरह वापस ले लिया है।और चालू वित्त वर्ष के अंत यानी 31 मार्च 2024 तक प्रभावी रहेगा। इससे देश में पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। पीली मटर का आयात खोल सरकार दाल की कीमतों में कमी लाना चाहती है, जो कि पिछले कुछ समय से लगातार बढ़ रही है। दाल की महंगाई करीब 19 फीसदी तक पहुंच गई है। किसान भी उत्पादन से दूर भाग रहे है, यह भी सरकार के लिए बड़ी परेशानी है।