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बंपर पैदावार के बावजूद नैनीताल के सेब किसान मायूस

सेब का MSP तय ना होने और बॉक्स के मनमाने दाम ने नैनीताल के सेब काश्तकारों की उम्मीदों पर पानी फेरा

जनपद नैनीताल के रामगढ़ एवं धारी ब्लॉक में इस वर्ष सेब  की बंपर पैदावार हुई। मौसम की विपरीत परिस्थितियों के बावजूद काश्तकारों के बागीचे सेब से लदे हैं। फिर भी इस इलाके के सेब उगाने वाले किसान निराश हैं। क्योंकि उन्हें अच्छी उपज के बावजूद नुकसान उठाना पड़ रहा है। वजह, उचित दाम न मिलना और मंडी में सेब के खरीदार ना आना।

रामगढ़ क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य कमलेश सिंह बताते हैं कि पिछले दो सप्ताह में सेब की कीमतों में भारी गिरावट आई है। किसानों को सेब के एक बॉक्स (8-10 किलों) का दाम 15 दिन पहले 600 रुपये तक मिल रहा था, अब यह घटकर मात्र 200 रुपये रह गया है, जबकि बॉक्स की पैकिंग और ढुलाई पर ही करीब 150 रुपये का खर्च आता है। ऐसे में किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल है। मंडी में मांग ना होने से क्षेत्र के किसान अभी तक 70 फीसदी फल नहीं तोड़ पाए। जो सेब टूटा वो बाजार में बिक नहीं पाया। किसानों के घरों में सेब के ढेर लगे पड़े हैं।

एक तरफ जहां स्थानीय किस्मों के सेब की मांग नहीं है और दाम गिरते जा रहे हैं, वहीं किसानों को मनमाने रेट पर बारदाना पेटी और बॉक्स बेचा जा रहा है। कमलेश सिंह बताते हैं कि जो बारदाना पेटी और डिब्बा 15 दिन पहले 55-60 रुपये का था, वो आज 100-110 रुपये का हो गया। मंडी में व्यापारी मनमर्जी से भाव और आपूर्ति तय कर रहे हैं।

सेब किसानों को उचित दाम ना मिलने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि राज्य में सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित नहीं हुआ है। इसके अलावा मंडी व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी है। व्यापारियों की मनमानी है। इन मुद्दों पर धारी रामगढ़ क्षेत्र के किसानों ने कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य को अपना ज्ञापन सौंपा। किसानों ने सरकार से एमएम सेब के बॉक्स सब्सिडी पर उपलब्ध कराने और पारदर्शी तरीके से सेब की खरीद शुरू कराने की मांग की है।

भवाली स्थित फ्रूटेज इंडिया फ्रूट प्रोसेसिंग कंपनी के मालिक संजीव भगत बताते हैं कि सघन तकनीक से उगाए जाने वाले नई विदेशी प्रजाति के सेबों की वजह से भी बाजार में स्थानीय किस्मों के सेब की मांग में गिरावट है। वहीं, अब हिमाचल प्रदेश का सेब जो अपने आकार और लाली के लिए मशहूर है, बाजार में आना शुरू हो गया है। इससे भी स्थानीय सेब की मांग घटी है।

रामगढ़ और धारी क्षेत्र के अधिकांश काश्तकार स्थानीय प्रजाति के सेब उगाते हैं। उदाहरण के लिए भूरा डिलिशियस पकने के बाद भी हल्के भूरे रंग का होता है। मंडी में व्यापारी इसे कच्चा कहकर सेब खरीद नहीं रहे हैं। दूसरी समस्या यह है कि स्थानीय प्रजाति के सेब का आकार विदेशी किस्मों के तुलना में छोटा होता है। इनका वजन 100 ग्राम से कम रहता है। इस आधार पर यह ‘सी’ ग्रेड की श्रेणी में आता है। 

रामगढ़ क्षेत्र के सूपी गांव के किसान देवेन्द्र गौड़ बताते हैं कि उन्होंने जुलाई महीने के आरंभ से लेकर अब तक 1500 पेटी सेब हल्द्वानी मंडी भेजा, जिनका उन्हें 200-500 रुपये प्रति पेटी मिला। लेकिन अब भाव में मंदी आ गई है। हल्द्वानी मंडी में आढ़तियों ने सेब न भेजने के लिए कहा है। उनकी तरह क्षेत्र के बहुत काश्तकारों ने अब सेब पेड़ से तोड़ने बंद कर दिए हैं। मंडी में मांग ना होने से किसानों के पास सेब के ढेर लगे हैं।

कमलेश सिंह बताते हैं कि रामगढ़ क्षेत्र में लगभग 40-50 गांव के काश्तकार सेब के दाम और मांग की समस्या से जूझ रहे हैं। साथ में बंदर और चिड़ियों द्वारा क्षति भी उनकी चिंता बढ़ा रही है। इसी तरह धारी में 50-60 गांव के काश्तकार प्रभावित हुए हैं। इनमें लगभग 70 प्रतिशत बागों में काश्तकारों ने स्थानीय प्रजाति के सेब उगाए हैं। 

संजीव भगत कहते हैं कि सरकार को सेब की पारंपरिक किस्मों के संवर्धन के लिए नीति बनाने पर ध्यान देना चाहिए। सघन तकनीकी से सरकारी योजनाओं के माध्यम से जो सेब उगाया जा रहा है, उसकी वजह से भी स्थानीय किस्मों के सेब की मांग घटी है। सघन तकनीक से उत्पादन में कीटनाशक, दवाइयां, स्प्रे और अत्यधिक देखरेख की आवश्यकता होती है। आकर और रंग में यह सेब अच्छे होते हैं। रेट भी ठीक मिल जाता है लेकिन उतने स्वादिष्ट नहीं होते। उदाहरण के लिए कल भवाली मंडी में हॉलैंड सेब की एक पेटी 1250 रुपये की बिकी। जबकि स्थानीय प्रजाति के सेब को मंडी में 8-12 रुपये किलो का रेट भी मुश्किल से मिल रहा है।

काश्तकार द्वारा कुल खर्च प्रति पेटी का विवरण: 

लकड़ी का बॉक्स – 100 रु 
packing            – 20 रु
मंडी जीप भाड़ा     – 13 रु  
बगीचे से रोड भाड़ा – 20 रु
आढ़ती कमीशन (8%) – 20 रु
पल्लेदारी              – 3 रु 
कील पेपर पिरूल    – 5रु  
कुल खर्च प्रति पेटी (161+ कमीशन 20) = रु 180 से 200

धारी और रामगढ़ के बीच स्थित ग्राम पंचायत गजार के काश्तकार देवेन्द्र सिंह बताते हैं कि इस वर्ष (मई) में जो सेब बाजार में भेजा, उसका अच्छा दाम मिला। लेकिन जब सब जगह से फल पक कर तैयार हुए, तो देश भर से आने वाले व्यापारी हल्द्वानी मंडी में नहीं पहुंच रहे हैं। इसके पीछे क्या वजह है उसके समाधान के लिए बागवानी विभाग, मंडी समिति एवं किसानों के साथ व्यापारियों को एक मंच पर बैठाकर इसका हल खोजने की जरूरत है। 

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