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उत्तराखंड में सेब का MSP घोषित, लेकिन 12 रुपये में लागत निकालना भी मुश्किल

सेब का उचित भाव ना मिलने से कुमाऊं की फल पट्टी के किसान मायूस, सरकारी खरीद से कुछ राहत की उम्मीद

DHAMI APPLE

उत्तराखंड सरकार ने सेब और गोला नाशपाती का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित कर दिया है। नीतिगत तौर पर देखें तो यह उद्यान काश्तकारों के लिए अच्छा कदम है। लेकिन दोनों फलों का एमएसपी मात्र एक-एक रुपये प्रति किलो बढ़ाया है। इससे किसानों की लागत निकलना भी मुश्किल है।

राज्य सरकार ने सी ग्रेड सेब का एमएसपी 11 से बढ़ाकर 12 रुपये जबकि गोला नाशपाती का एमएसपी 6 से बढ़ाकर 7 रुपये प्रति किलो किया है। उधर, किसानों का कहना है कि सेब को मंडी तक पहुंचाने का खर्च ही 16-18 रुपये प्रति किलोग्राम तक आता है। ऐसे में समर्थन मूल्य के बावजूद सेब किसानों को नुकसान उठाना पड़ेगा। नाशपाती का एमएसपी भी बहुत कम है।

उत्तराखंड में नैनीताल फल पट्टी के सेब किसान अच्छी पैदावार के बावजूद मंडी में भाव और खरीदार ना मिलने से परेशान हैं। वहां की पुरानी किस्मों के सेब आकार में छोटे होते हैं जो सी ग्रेड के माने जाते हैं। अपर सचिव रणवीर सिंह चौहान का कहना है कि उद्यान विभाग को नई दरों के हिसाब से सेब और नाशपाती की खरीद के आदेश दिए हैं। यदि बाजार भाव एमएसपी से कम होता है तो विभाग सरकारी दरों पर सेब और नाशपाती की खरीद करेगा।

कृषि मंत्री गणेश जोशी का कहना है कि सरकार किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना सुनिश्चित करेगी। सेब और नाशपाती का एमएसपी घोषित कर दिया है। यदि बाजार में मूल्य कम होता है या खरीदार नहीं मिलते तो सेब और नाशपाती सरकार खरीदेगी। खबर है कि उद्यान विभाग सचल दल के जरिए किसानों से सरकारी दरों पर सेब, नाशपाती खरीदने की तैयारी कर रहा है। शुरुआत में करीब एक-एक हजार टन फल एमएसपी पर खरीदने का लक्ष्य है।

सरकार भले ही किसानों को फायदा पहुंचाने का दावा कर रही है लेकिन असल में सेब और नाशपाती का जो एमएसपी तय किया है वो बेहद कम है। नैनीताल के रामगढ़ क्षेत्र के के जिला पंचायत सदस्य कमलेश सिंह बताते हैं कि सेब को बागीचे से तोड़कर पैक कर मंडी तक पहुंचाने का खर्च ही प्रति बॉक्स (8-10 किग्रा) 160 से 170 रुपये तक आता है। मंडी में बारदाना पेटी और बॉक्स का दाम 100 रुपये से ऊपर पहुंच गया है। ऐसे में मात्र 12 रुपये के एमएसपी से तो ढुलाई की लागत भी नहीं निकल पाएगी। पौध लगाने से लेकर फल तैयार होने तक किसानों की मेहनत और लागत तो भूल ही जाइये। सरकार द्वारा घोषित एमएसपी बहुत ही कम है।

दूसरी तरफ, अगर उपभोक्ता के नजरिये से देखें तो जो सेब किसान 10-12 रुपये किलो के भाव पर बेचने को मजबूर हैं, वही बाजार में वो 80 से 100 रुपये किलो तक बिक रहा है। गोला नाशपाती का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो मात्र सात रुपये प्रति किलो तय किया गया है जबकि बाजार में यह फल 50 से 80 रुपये किलो बिक रहा है। मतलब, एक तरफ किसान उचित दाम से वंचित है जबकि उपभोक्ता को महंगा खरीदना पड़ रहा है। उपभोक्ता जो दो चुका रहा है, उसका फायदा किसानों तक नहीं पहुंचता।

उचित भाव और खरीदार ना मिलने के कारण नैनीताल के रामगढ़ और धारी क्षेत्र में काश्तकार सेब की तुड़ाई भी नहीं कर पा रहे हैं। लगातार भारी बारिश और रास्ते बंद होने से भी मंडी में आपूर्ति बाधित हुई है जिसके चलते किसानों के घरों में सेब के ढेर लगे हुए हैं। अगर सेब की सरकारी खरीद शुरू होती है तो इससे किसानों को कुछ राहत जरूर मिलेगी।

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