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पिरूल का सदुपयोग करने वाले उद्यमियों को मिलेगी सब्सिडी

जंगलों को आग से बचाने के लिए पिरूल के निस्तारण को लेकर बैठकों का दौर जारी

चीड़ की सूखी पत्ती यानी पिरूल जंगलों में आग का कारण बनता है। कई साल से उत्तराखंड सरकार पिरूल से बिजली उत्पादन तथा आजीविका सृजन के प्रयास कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का तो यह ड्रीम प्रोजेक्ट था। हर साल गर्मियों से पहले वनों की आग पर अंकुश लगाने के लिए पिरूल याद आता है।

गुरूवार को सचिवालय में मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु ने पिरूल से आजीविका सृजन, वैकल्पिक ईंधन आदि क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक उद्यमियों के साथ विचार-विमर्श किया तथा उनके सुझाव मांगे। मुख्य सचिव ने उद्यमियों को शुरूआती सहायता प्रदान करने के लिए पहले 5 सालों में उद्यमियों द्वारा दिए जाने वाले जीएसटी का 70 प्रतिशत सब्सिडी दिए जाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही पिरूल के उपयोग को लेकर विभिन्न पर्वतीय प्रदेशों की बेस्ट प्रेक्टिसेज को अपनाने को कहा है। मुख्य सचिव ने पिरूल कलेक्शन में लगे स्वयं सहायता समूहों को नियमित भुगतान सुनिश्चित करने के लिए वन विभाग को एक कॉर्पस फंड बनाने के निर्देश दिए हैं।

मुख्य सचिव ने कहा कि पिरूल के ट्रांसपोर्टेशन में कोई समस्या न हो इसके लिए ई-रवन्ना जारी करते हुए इसकी ट्रांजिट फीस को न्यूनतम किया जाए। वनों से पिरूल का अधिक से अधिक निस्तारण हो सके, इसके लिए विभिन्न उत्पादों को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने वन विभाग और उद्योग विभाग को इस दिशा में कार्यरत उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों को हर सम्भव सहायता उपलब्ध कराने को कहा है।

मुख्य सचिव ने कहा कि ईंधन के रूप में प्रयोग होने वाले ब्रिकेट्स/पैलेट्स की मार्केटिंग आदि की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए। उन्होंने ब्रिकेट्स बनाने हेतु आवश्यक ‘बाइंडिंग डस्ट’ के अन्य विकल्प तलाशे जाने हेतु वन विभाग को निर्देशित किया। जंगलों को आग से बचाने के लिए पिरूल का निस्तारण आवश्यक है। पिरूल का अधिक से अधिक कलेक्शन हो सके इसके लिए पिरूल कलेक्शन में लगे स्वयं सहायता समूहों को ब्लोवर मशीनें भी उपलब्ध करायी जा सकती हैं। मुख्य सचिव ने रसोई (एलपीजी) गैस के विकल्प के रूप में पैलेट्स से चलने वाले चूल्हे की उपयोगिता के लिए सैम्पल लेकर प्रयोग किए जाने के भी निर्देश दिए।

इस अवसर पर पिरूल से विभिन्न उत्पाद तैयार करने वाले उद्यमियों ने मुख्य सचिव को अपने सुझावों और समस्याओं से अवगत कराया। उद्यमियों ने उनके द्वारा निर्मित विभिन्न उत्पादों को भी प्रदर्शित किया। बैठक में प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) श्री विनोद कुमार, सचिव डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय, श्री विजय कुमार यादव एवं निदेशक उरेडा श्रीमती रंजना राजगुरू सहित पिरूल से सम्बन्धित विभिन्न उद्यमी उपस्थित थे। इससे पहले गत 24 जनवरी को भी मुख्य सचिव डॉ. एस.एस. संधु ने पिरूल के निस्तारण एवं अन्य उपयोगों के बारे में सम्बन्धित अधिकारियों के साथ बैठक की थी।

लेकिन सवाल यह है कि पिरूल के निस्तारण और उपयोग की नीति और योजनाएं कितनी कारगर रही हैं?

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