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अमेरिकी सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी घटने से किसान चिंतित, कांग्रेस ने बताया ‘हिमाचल हार का बदला’

अमेरिकी सेब पर आयात शुल्क 70 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी करने के केंद्र सरकार के फैसले से स्थानीय सेब उत्पादक चिंतित

Washington apples

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के सेब उत्पादकों के सामने अमेरिका का वॉशिंगटन ऐपल बड़ी चुनौती बन सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए हैं। इसी के तहत भारत आठ अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त इंपोर्ट ड्यूटी (रीटेलिएटरी टैरिफ) हटाएगा। इनमें सेब, चना, मसूर, बादाम और अखरोट शामिल हैं।

भारत सरकार के इस फैसले का अमेरिकी सांसदों ने स्वागत किया है लेकिन इससे हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के सेब उत्पादकों की मुश्किलें जाएंगी। 20 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी घटने के बाद वॉशिंगटन ऐपल पर 70 फीसदी की बजाय 50 फीसदी आयात शुल्क लगेगा। इससे भारत में अमेरिकी सेब का आयात बढ़ेगा और प्रीमियम भारतीय सेब को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। कांग्रेस ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए इसे “हिमाचल की हार का बदला” करार दिया है।

हिल स्टेट एग्रीकल्चर फोरम के संयोजक हरीश चौहान ने बताया कि वॉशिंगटन ऐपल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटने से इसका रेट प्रीमियम भारतीय सेब के बराबर हो जाएगा। केंद्र सरकार के इस फैसले से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के सेब उत्पादकों को नुकसान होगा। क्योंकि वॉशिंगटन ऐपल एक ब्रांड के तौर पर स्थापित है। इसका आयात बढ़ने से स्वदेशी सेब की मांग और कीमतों पर असर पड़ेगा। पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को पहले ही उनकी उपज के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं।

अमेरिकी सेब पर आयात शुल्क घटाने को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने तंज कसते हुए ट्विट किया, “प्रधानमंत्री चाहते हैं कि ऐपल भारत में इंवेस्ट करें लेकिन उन्हें हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों की कोई परवाह नहीं है। अमेरिकी सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाकर उन्होंने हिमाचल के चुनाव में अपनी हार का बदला लिया है।”  

साल 2018 से पहले भारत में अमेरिकी सेब का काफी आयात होता था, जिससे हिमाचल के किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन 2019 में अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने के विरोध में भारत ने वॉशिंगटन ऐपल समेत 28 अमेरिकी उत्पादों पर रीटेलिएटरी टैरिफ लगा दिया था। तब से अमेरिकी सेब के आयात में कमी आई है। यही वजह है कि हिमाचल में सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर 100 फीसदी करने की मांग उठ रही है। लेकिन केंद्र सरकार ने इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की बजाय घटाने का फैसला किया है।

प्रधानमंत्री मोदी की हालिया अमेरिकी यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच विश्व व्यापार से जुड़े छह विवादों को समाप्त करने और अमेरिकी उत्पादों पर रीटेलिएटरी टैरिफ खत्म करने पर सहमति बनी है। भारत द्वार आठ अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त इंपोर्ट ड्यूटी कम करने के बाद इन पर सर्वप्रिय राष्ट्र (MFN) की दरें लागू होंगी। अमेरिकी कृषि उत्पादों पर 2019 में लागू आयात शुल्क हटाने के भारत सरकार के निर्णय को लेकर कई तरह की शंकाएं और सवाल उठाए जा रहे हैं।

अमेरिका से समझौते के बाद भारत सरकार अमेरिकी सेब पर 20 फीसदी, चने पर 10 फीसदी, मसूर पर 20 फीसदी, बादाम पर 7 रुपये प्रति किग्रा, अखरोट पर 20 फीसदी अतिरिक्त इंपोर्ट ड्यूटी हटाएगी। उल्लेखनीय है कि अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। बीते वित्त वर्ष में द्विपक्षीय माल व्यापार बढ़कर 128.8 अरब डॉलर हो गया था जो वित्त वर्ष 2021-22 में 119.5 अरब डॉलर था। भारत अमेरिकी सेब का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।

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